भारत की संसद ने हाल ही में तीन ऐसे नए कानून बनाए हैं, जो देश के अपराध से जुड़े पूरे सिस्टम को बदलकर रख देंगे। ये कानून पुराने दंड विधान (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और साक्ष्य कानून की जगह लेंगे और कानूनी व्यवस्था को और बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे। लेकिन इन कानूनों को बनाने का तरीका और ये कितने कारगर साबित होंगे, इसको लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
एक बड़ी चिंता ये है कि इन कानूनों पर संसद में ठीक से चर्चा नहीं हुई। विपक्ष के 140 से ज्यादा सदस्यों की गैर-मौजूदगी में ही ये बिल पास कर दिए गए। इससे इस बात पर सवाल उठता है कि क्या इस प्रक्रिया को सही माना जाए और क्या सभी जरूरी मुद्दों पर गौर किया गया ?
क्या है IPC और CrPC ?
भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC): यह मुख्य आपराधिक संहिता है जो अपराधों को परिभाषित करती है और लगभग सभी प्रकार के आपराधिक और कार्रवाई योग्य गलतियों के लिए दंड प्रदान करती है। चोरी, हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी, और अपमान जैसे अपराधों का विवरण और उनसे जुड़ी सजाएँ इसी संहिता में मिलती हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1974 (CrPC): यह प्रक्रियात्मक कानून है जो दंड कानूनों के तहत सजा के लिए विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करता है। इसमें अपराधों की जांच, गिरफ्तारी, जमानत, मुकदमे और अपील से संबंधित प्रक्रियाओं का वर्णन होता है। CrPC यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को दंडित करते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए और आरोपियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
सरल शब्दों में कहें, IPC आपको बताता है कि क्या गलत है और उस गलती के लिए क्या सजा हो सकती है, जबकि CrPC आपको बताता है कि उस गलती के लिए सजा कैसे दी जाएगी।
नया नाम, पुराना खेल?
नए कानूनों को भले ही नए नाम दिए गए हैं, जैसे पुराने IPC की जगह “भारतीय न्याय संहिता” (BNS) आ गई है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इनमें ज्यादा बदलाव नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह का ये दावा कि ये पूरी तरह “भारतीय” कानूनी ढांचा है, उसे भी चुनौती दी जा रही है। क्योंकि ये नए कानून ना तो पुलिस काम करने के तरीके में, ना ही न्याय दिलाने के तरीके में कोई बड़ा बदलाव लाते दिखते हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) का उद्देश्य दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) को बदलना है। CrPC गिरफ्तारी, अभियोजन और जमानत की प्रक्रिया निर्धारित करती है। BNSS उन अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अनिवार्य कर देती है जिनकी सजा सात साल या उससे अधिक की है।
इसका मतलब है:
- अब CrPC की जगह BNSS होगी।
- BNSS गिरफ्तारी, मुकदमेबाजी, और जमानत की प्रक्रिया को नियंत्रित करेगी।
- सात साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अनिवार्य हो जाएगी। इसका मतलब है कि सबूत इकट्ठा करने और अपराध की जांच के लिए वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
यह कानून अभी भी विकास के अधीन है और संसद द्वारा पारित नहीं किया गया है। इसलिए, यह स्पष्ट नहीं है कि यह कानून कब और कैसे लागू होगा।
कुछ अच्छे कदम, अनिश्चित प्रभाव:
इन चिंताओं के बावजूद, कुछ सकारात्मक बदलाव भी किए गए हैं। पुराने और बेकार हो चुके राजद्रोह कानून को हटाना और भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के लिए अलग अपराध बनाना स्वागत योग्य कदम हैं। साथ ही, सरकार का व्यभिचार को फिर से अपराध नहीं बनाने का फैसला भी अच्छा माना जा रहा है। लेकिन, “आतंकवाद” को किसी खास कानून के तहत ना लाकर सीधे आम दंड कानून में शामिल करने से इस गलत इस्तेमाल की चिंता जताई जा रही है।
सुधार के रास्ते पर, सवाल बाकी:
कुछ कार्यप्रणाली में भी बदलाव किए गए हैं, जैसे पुलिस को अब शिकायत दर्ज करने के लिए जगह का ध्यान नहीं रखना होगा और फोरेंसिक जांच और वीडियोग्राफी को बढ़ावा दिया जाएगा। लेकिन, एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है: क्या नया कानून पुलिस को 15 दिन से ज्यादा हिरासत में रखने की इजाजत देता है, या फिर सिर्फ गिरफ्तारी के बाद 40-60 दिनों में फैला देता है? इस स्पष्टता की कमी से गलत इस्तेमाल की आशंका बनी रहती है।
आखिरकार, इन नए कानूनों का असली असर इस बात पर निर्भर करेगा कि इन्हें कैसे लागू किया जाता है और उनकी व्याख्या कैसे की जाती है। अगर सिस्टम की गहरी खामियों को दूर करने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है, तो सिर्फ नाम और प्रक्रिया बदलने से कुछ नहीं होगा। असली चुनौती ये है कि सभी के लिए, चाहे कोई भी सत्ता में हो या कानून की किताबों में कुछ भी लिखा हो, निष्पक्ष, तेज और मानवीय न्याय सुनिश्चित किया जाए।Read more